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  • बाबा बालक नाथ मंदिर - इतिहास और महत्व

  • बाबा बालक नाथ हिंदू पौराणिक कथाओं में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं, जो गुरु दत्तात्रेय के प्रति अपनी भक्ति और अपने चमत्कारी कार्यों के लिए जाने जाते हैं। किंवदंती के अनुसार, बाबा ने तीन साल की उम्र में अपना परिवार छोड़ दिया था और ऋषि नारद ने उन्हें जप करने या गुरु दत्तात्रेय के मंत्रों का जाप करने के लिए निर्देशित किया था। जब बाबा चार साल और आठ महीने के थे, तब गुरु दत्तात्रेय ने उन्हें अपने शिष्य के रूप में लिया और वह चार-धाम यात्रा (चार पवित्र स्थानों की तीर्थयात्रा) पर निकल पड़े। अपनी तीर्थयात्रा के दौरान, बाबा बनवाला में रुके और बाद में हिमाचल प्रदेश के शाहतलाई पहुँचे, जहाँ वे माता रत्नो के दत्तक पुत्र बने और उनकी गायों का पालन-पोषण किया। बाबा बालक नाथ ने बरगद के पेड़ के नीचे तपस्या करते हुए, अपनी योगाभ्यास करते हुए और भोजन के लिए रत्नो माई से रोटी और लस्सी स्वीकार करते हुए बारह साल बिताए। बारहवें वर्ष के अंत में गाँव के लोगों की शिकायतें आने लगीं कि बाबा उनकी गायों की उपेक्षा कर रहे हैं और उनकी फसलों को नुकसान पहुँचा रहे हैं। रत्नो माई ने स्वयं लोगों को खुश करने की कोशिश की, लेकिन ग्राम प्रधान ने उनकी गायों द्वारा उनकी फसल को गंभीर नुकसान पहुंचाने के लिए उन्हें सार्वजनिक रूप से डांटा। रत्नो माई ने अपना धैर्य खो दिया और बाबा से उनकी लापरवाही की शिकायत की। यह सुनकर, बाबा उन्हें और गाँव के मुखिया को उस खेत में ले गए जिसके बारे में वे शिकायत कर रहे थे, जहाँ उन्हें आश्चर्य हुआ कि फसलें चमत्कारिक रूप से ठीक हो गई थीं, और कोई नुकसान नहीं हुआ था। बाबा बालक नाथ ने खुलासा किया कि उन्होंने कभी भी वह रोटी और लस्सी नहीं खाई जो रत्नो माई उनके लिए रोज लाती थी, और इस प्रकार, उन पर कोई नया कर्ज नहीं हुआ। बाबा ने बरगद के पेड़ के तने पर अपना चिमटा फेंका, जिसके नीचे वह पिछले बारह वर्षों से बैठे थे, और लकड़ी का एक टुकड़ा टूट गया, जिससे अंदर रोटियों का ढेर दिखाई देने लगा। उसने अपना चिमटा भी जमीन में धकेल दिया और छाछ का झरना फूट पड़ा, जो जल्द ही छाछ का तालाब बन गया। यह तालाब आज भी शाहतलाई में देखा जा सकता है, जिससे इस स्थान का नाम पड़ा। आज, जिस स्थान पर पौराणिक बरगद का पेड़ स्थित था, वहां एक खोखली संरचना है जिसे "खोखले पेड़ के नीचे तपस्या की भूमि" कहा जाता है और बाबा बालक नाथ, गुगा चौहान और नाहर सिंह की मूर्तियों वाला एक मंदिर है। भक्तों का मानना है कि उस स्थान की मिट्टी मवेशियों के पैर रोग के खिलाफ एक प्रभावी दवा है। बाबा बालक नाथ की कहानी आस्था और भक्ति की शक्ति की याद दिलाती है और उनके चमत्कार आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं।
    • सिद्ध बाबा बालक नाथ की परंपरा एवं पूजा

    • दियोटसिद्ध भारत के हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले में स्थित एक तीर्थ स्थल है। कहा जाता है कि दियोटसिद्ध में पूजा परंपरा की शुरुआत तब हुई जब बनारसी नाम के एक ब्राह्मण ने प्रसिद्ध नाथ योगी बाबा बालक नाथ से शिकायत की कि उनकी कुछ गायें बंजर हैं। बाबा ने अपनी धूनी की राख से गायों को ठीक किया और बनारसी बाबा का घनिष्ठ भक्त बन गया। जब बाबा बालक नाथ का धरती से सन्यास लेने का समय नजदीक आया तो उन्होंने बनारसी को अपनी धूनी और पूजा की परंपरा को जारी रखने के लिए कहा। बनारसी ने इन निर्देशों का पालन किया और अभ्यास को बनाए रखा, और बाबा बालक नाथ को समर्पित मुख्य पवित्र मंदिर और उनकी तपस्या स्थली शाहतलाई में स्थित है। दियोटसिद्ध मंदिर पहाड़ी की चोटी पर एक प्राकृतिक गुफा में पाया जाता है, और उपासकों का मानना है कि बाबा बालक नाथ आज भी अदृश्य रूप में इस स्थान के आसपास मौजूद हैं। इस मंदिर का प्रबंधन हिमाचल राज्य सरकार द्वारा सिद्ध बाबा बालक नाथ मंदिर ट्रस्ट के माध्यम से किया जाता है, जो कई धार्मिक गतिविधियों का संचालन करता है और इस स्थान के परिसर का रखरखाव करता है। बाबा बालक नाथ की पूजा में महंगी सामग्री से बना और समय लेने वाली और ऊर्जा लेने वाली प्रक्रिया से तैयार रोटी प्रसाद चढ़ाना शामिल है। भोजन पहले देवता को अर्पित किया जाता है और फिर उपासकों के बीच वितरित किया जाता है।
      • पुराणों एवं साहित्य में सिद्ध परंपरा

      • पुराणों एवं साहित्य में सिद्ध परंपरा के पर्याप्त संदर्भ सुलभ है। पतंजलि योग सूत्र के विभूति पाद उल्लेख के अनुसार सिद्धों के दर्शन समान्यता नहीं होते हैं परंतु मनुष्य अपने शरीर के ऊपरी भाग में मन संयम करते हैं तब सिद्धों के दर्शन सुलभ होते हैं। बाबा बालक नाथ जी को कलियुग का साक्षात अवतार सर्वोच्च सिद्ध माना गया है। सिद्धों के विलक्षण चरित्र व संबंधित लोक का महाभारत के अश्वमेघ पर्व में भी उल्लेख मिलता हैं। लोकमत के अनुसार सिद्ध पुरुष सहस्त्रों वर्ष जीवित रहते हैं और आज भी सूक्ष्म रूप में लोक विचरण करते हैं।बाबा बालक नाथ जी का जन्म पौराणिक मुनिदेव व्यास के पुत्र शुकदेव के जन्म के समय बताया जाता है। शुकदेव मुनि का जब जन्म हुआ, उसी समय 84 सिद्धों ने विभिन्न स्थानों पर जन्म लिया। इनमें सर्वोच्च सिद्ध बाबा बालक नाथ भी एक हुए। बाबा बालक नाथ गुरु दत्तात्रेय के शिष्य थे। ऐतिहासिक संदर्भ में नवनाथों और 84 सिद्धों का समय आठवीं से 12वीं सदी के बीच माना जाता है। चंबा के राजा साहिल वर्मन के राज्यकाल जोकि दसवीं शताब्दीं का है, के समय 84 सिद्ध भरमौर गए थे। वे जिस स्थान पर रुके थे, वह स्थान आज भी भरमौर चौरासी के नाम से विख्यात है। नौवीं शताब्दी ही ङ्क्षहदी साहित्य में सरहपा, शहपा, लूईपा आदि कुछ सिद्ध संतों की वाणियां मिलती हैं। बाबा बालक नाथ जी के बारे में लोकश्रुति अत्यंत प्रसिद्ध है कि उनका जन्म युगों-युगों में होता है। सतयुग में स्कंद, त्रेता में कौल, द्वापर में महाकौल और कलियुग में बाबा बालक नाथ के नाम से उनका अवतार हुआ है। बाल योगी बाबा बालक नाथ काठियाबाड़ गुजरात में पिता नारायण विष्णो वेश और माता लक्ष्मी के घर जन्मे हैं। गिरनार पर्वत के सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल जूनागढ़ में गुरु दतात्रेय से उन्हें दीक्षा प्राप्त हुई। उस जमाने के सूर्यग्रहण के समय कुरुक्षेत्र पधारे बाबा बालक घूमते-घूमते बिलासपुर के बछरेटू में पहुंचे वहां कुछ समय रहने के बाद शाहतलाई मे आए जहां उनकी भेंट माई रत्नो से हुई और शाहतलाई में उन्होंने वट वृक्ष के नीचे अपनी धूनी रमाई। 12 वर्ष का समय पूरा होने के बाद पौणाहारी बाबा बालक नाथ ने दियोटसिद्व में अपना धाम प्रतिष्ठित किया जहां उनकी भेंट चकमोह के गाय चराने वाले बनारसी दास से हुई। आज यह स्थान दियोटसिद्ध नगर प्रतिष्ठित हैं। दियोटसिद्ध में चरणपादुका मंदिर भरथरी मंदिर, मठ स्थल, महंत कृपालगिर समाधि स्थल, महंत शक्ति गिरी समाधि स्थल, महंत शिव गिर समाधि स्थल, महंत रणजीत समाधि स्थल आदि अनेक दिव्य मंदिर हैं। यहाँ यात्रा करने वाले यात्री शाहतलाई भी देख सकते हैं जो पास ही स्थित है। बाबा बालकनाथ जी पंजाबी हिन्दू आराध्य हैं, जिनको उत्तर-भारतीय राज्य पंजाब और हिमाचल प्रदेश में बहुत श्रद्धा से पूजा जाता है, इनके पूजनीय स्थल को “दयोटसिद्ध” के नाम से जाना जाता है, यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के छकमोह गाँव की पहाडी के उच्च शिखर में स्थित है। मंदिर में पहाडी के बीच एक प्राकॄतिक गुफा है, ऐसी मान्यता है, कि यही स्थान बाबाजी का आवास स्थान था। मंदिर में बाबाजी की एक मूर्ति स्थित है, भक्तगण बाबाजी की वेदी में “ रोट” चढाते हैं, “ रोट ” को आटे और चीनी गुड को घी में मिलाकर बनाया जाता है। यहाँ पर बाबाजी को बकरा भी चढ़ाया जाता है, जो कि उनके प्रेम का प्रतीक है, यहाँ पर बकरे की बलि नहीं चढाई जाती बल्कि उनका पालन पोषण करा जाता है। बाबाजी की गुफा में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबन्ध है, लेकिन उनके दर्शन के लिए गुफा के बिलकुल सामने एक ऊँचा चबूतरा बनाया गया है, जहाँ से महिलाएँ उनके दूर से दर्शन कर सकती हैं। मंदिर से करीब छहः कि.मी. आगे एक स्थान “शाहतलाई” स्थित है, ऐसी मान्यता है, कि इसी जगह बाबाजी “ध्यानयोग” किया करते थे।
        • बाबा बालक नाथ की जन्म कथा

        • बाबा बालक नाथ के "सिद्ध-पुरुष" के रूप में जन्म के बारे में सबसे लोकप्रिय कहानी भगवान शिव की अमर कथा से जुड़ी है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव अमरनाथ की गुफा में देवी पार्वती के साथ अमर कथा सुना रहे थे, और देवी पार्वती सो गईं.. गुफा में एक तोता का बच्चा था और वह पूरी कहानी सुन रहा था और "हाँ" ("हम्म.") का शोर कर रहा था। जब कथा समाप्त हुई तो भगवान शिव ने देवी पार्वती को सोते हुए पाया तो वे समझ गये कि यह कथा किसी और ने सुनी है। वह बहुत क्रोधित हो गया और उसने अपना त्रिशूल तोते के बच्चे पर फेंक दिया। तोते का बच्चा अपनी जान बचाने के लिए वहां से भाग गया और त्रिशूल ने उसका पीछा किया। रास्ते में ऋषि व्यास की पत्नी उबासी ले रही थी। तोते का बच्चा उसके मुँह के रास्ते उसके पेट में घुस गया। त्रिशूल रुक गया, क्योंकि किसी स्त्री को मारना अधर्म था। जब भगवान शिव को यह सब पता चला तो वे भी वहां आए और ऋषि व्यास को अपनी समस्या बताई। ऋषि व्यास ने उससे कहा कि उसे वहीं इंतजार करना चाहिए और जैसे ही तोते का बच्चा बाहर आएगा, वह उसे मार सकता है। भगवान शिव बहुत देर तक वहीं खड़े रहे लेकिन तोते का बच्चा बाहर नहीं आया। जैसे ही भगवान शिव वहां खड़े हुए, पूरा ब्रह्मांड अव्यवस्थित हो गया.. तब सभी देवता ऋषि नारद से मिले और उनसे दुनिया को बचाने के लिए भगवान शिव से अनुरोध करने का अनुरोध किया..तब नारद भगवान शिव के पास आए और उनसे अपना क्रोध छोड़ने की प्रार्थना की क्योंकि बालक ने पहले ही अमर कथा सुन ली थी। और इसलिए अब वह अमर हो गया था और अब उसे कोई नहीं मार सकता था। यह सुनकर भगवान शिव ने तोते के बच्चे को बाहर आने को कहा और बदले में तोते के बच्चे ने उनसे आशीर्वाद मांगा। भगवान शिव ने इसे स्वीकार कर लिया और तोते के बच्चे ने प्रार्थना की कि जैसे ही वह एक आदमी के रूप में बाहर आएगा, उसी समय जो भी बच्चा जन्म लेगा, उसे सभी प्रकार का ज्ञान दिया जाएगा और वह अमर हो जाएगा। जैसे ही भगवान शिव ने इसे स्वीकार किया, ऋषि व्यास के मुख से एक दिव्य शिशु प्रकट हुआ। उन्होंने भगवान शिव की प्रार्थना की और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। यही दिव्य शिशु आगे चलकर सुखदेव मुनि कहलाया। उस समय जन्म लेने वाले अन्य शिशु नौ नाथ और चौरासी सिद्ध के नाम से प्रसिद्ध थे। उनमें से एक थे बाबा बालक नाथ। शाह तलाई नामक क्षेत्र लगभग 55 किलोमीटर दूर स्थित है। बिलासपुर से आगे भगेर-बडसेर रोड पर। यह स्थान दियोटसिद्ध मंदिर से केवल 4 किमी दूर है। इस स्थान का प्राचीन नाम चंगेर तलाई था। बाबा बालक नाथ की पूजा और माँ रत्नो के मवेशियों को चराना, बाद में उन्हें चच का गद्दा लौटाना - यह छततलाई के नाम से प्रसिद्ध हुआ जो बाद में शाहतलाई हो गया। बाबा बालकनाथ जी की कहानी बाबा बालकनाथ अमर कथा में पढ़ी जा सकती है, ऐसी मान्यता है, कि बाबाजी का जन्म सभी युगों में हुआ जैसे कि सत्य युग,त्रेता युग,द्वापर युग और वर्तमान में कल युग और हर एक युग में उनको अलग-अलग नाम से जाना गया जैसे “सत युग” में “ स्कन्द ”, “ त्रेता युग” में “ कौल” और “ द्वापर युग” में “महाकौल” के नाम से जाने गये। अपने हर अवतार में उन्होंने गरीबों एवं निस्सहायों की सहायता करके उनके दुख दर्द और तकलीफों का नाश किया। हर एक जन्म में यह शिव के बडे भक्त कहलाए। द्वापर युग में, ” बालयोगी महाकौल” जिस समय “कैलाश पर्वत” जा रहे थे, जाते हुए रास्ते में उनकी मुलाकात एक वृद्ध स्त्री से हुई, उसने बाबा जी से गन्तव्य में जाने का अभिप्राय पूछा, वृद्ध स्त्री को जब बाबाजी की इच्छा का पता चला कि वह भगवान शिव से मिलने जा रहे हैं तो उसने उन्हें मानसरोवर नदी के किनारे तपस्या करने की सलाह दी और माता पार्वती, (जो कि मानसरोवर नदी में अक्सर स्नान के लिए आया करती थीं) से उन तक पहुँचने का उपाय पूछने के लिए कहा। बाबाजी ने बिलकुल वैसा ही किया और अपने उद्देश्य, भगवान शिव से मिलने में सफल हुए। बालयोगी महाकौल को देखकर शिवजी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने बाबाजी को कलयुग तक भक्तों के बीच सिद्ध प्रतीक के तौर से पूजे जाने का आशिर्वाद प्रदान किया और चिर आयु तक उनकी छवि को बालक की छवि के तौर पर बने रहने का भी आशिर्वाद दिया। कलयुग में बाबा बालकनाथ जी ने गुजरात, काठियाबाद में “देव” के नाम से जन्म लिया। उनकी माता का नाम लक्ष्मी और पिता का नाम वैष्णो वैश था, बचपन से ही बाबाजी ‘आध्यात्म’ में लीन रहते थे। यह देखकर उनके माता पिता ने उनका विवाह करने का निश्चय किया, परन्तु बाबाजी उनके प्रस्ताव को अस्विकार करके और घर परिवार को छोड़ कर ‘ परम सिद्धी ’ की राह पर निकल पड़े और एक दिन जूनागढ़ की गिरनार पहाडी में उनका सामना “स्वामी दत्तात्रेय” से हुआ और यहीं पर बाबाजी ने स्वामी दत्तात्रेय से “ सिद्ध” की बुनियादी शिक्षा ग्रहण करी और “सिद्ध” बने। तभी से उन्हें “ बाबा बालकनाथ जी” कहा जाने लगा। बाबाजी के दो पृथ्क साक्ष्य अभी भी उप्लब्ध हैं जो कि उनकी उपस्तिथि के अभी भी प्रमाण हैं जिन में से एक है “ गरुन का पेड़” यह पेड़ अभी भी शाहतलाई में मौजूद है, इसी पेड़ के नीचे बाबाजी तपस्या किया करते थे। दूसरा प्रमाण एक पुराना पोलिस स्टेशन है, जो कि “बड़सर” में स्थित है जहाँ पर उन गायों को रखा गया था जिन्होंने सभी खेतों की फसल खराब कर दी थी, जिसकी कहानी इस तरह से है कि, एक महिला जिसका नाम ’ रत्नो ’ था, ने बाबाजी को अपनी गायों की रखवाली के लिए रखा था जिसके बदले में रत्नो बाबाजी को रोटी और लस्सी खाने को देती थी । ऐसी मान्यता है कि बाबाजी अपनी तपस्या में इतने लीन रहते थे कि रत्नो द्वारा दी गयी रोटी और लस्सी खाना याद ही नहीं रहता था। एक बार जब रत्नो बाबाजी की आलोचना कर रही थी कि वह गायों का ठीक से ख्याल नहीं रखते जबकि रत्नो बाबाजी के खाने पीने का खूब ध्यान रखतीं हैं। रत्नो का इतना ही कहना था कि बाबाजी ने पेड़ के तने से रोटी और ज़मीन से लस्सी को उत्त्पन्न कर दिया। बाबाजी ने सारी उम्र ब्रह्मचर्य का पालन किया और इसी बात को ध्यान में रखते हुए उनकी महिला भक्त ‘गर्भगुफा’ में प्रवेश नहीं करती जो कि प्राकृतिक गुफा में स्थित है जहाँ पर बाबाजी तपस्या करते हुए अंतर्ध्यान हो गए थे।
          • बाबा बालक नाथ जी के दिव्य धाम की कहानी

          • हिमाचल प्रदेश में अनेकों धर्मस्थल प्रतिष्ठित हैं, जिनमें बाबा बालक नाथ धाम दियोट सिद्ध उत्तरी भारत में एक दिव्य सिद्ध पीठ है। यह पीठ हमीरपुर से 45 किलोमीटर दूर दियोट सिद्ध नामक सुरम्य पहाड़ी पर है। इसका प्रबंध हिमाचल सरकार के अधीन है। हमारे देश में अनेकानेक देवी-देवताओं के अलावा नौ नाथ और चौरासी सिद्ध भी हुए हैं जो सहस्त्रों वर्षों तक जीवित रहते हैं और आज भी अपने सूक्ष्म रूप में वे लोक में विचरण करते हैं। भागवत पुराण के छठे स्कंद के सातवें अध्याय में वर्णन आता है कि देवराज इंद्र की सेवा में जहां देवगण और अन्य सहायकगण थे वहीं सिद्ध भी शामिल थे। नाथों में गुरु गोरखनाथ का नाम आता है। इसी प्रकार 84 सिद्धों में बाबा बालक नाथ जी का नाम आता है। बाबा बालक नाथ जी के बारे में प्रसिद्ध है कि इनका जन्म युगों-युगों में होता रहा है। प्राचीन मान्यता के अनुसार बाबा बालक नाथ जी को भगवान शिव का अंश अवतार ही माना जाता है। श्रद्धालुओं में ऐसी धारणा है कि बाबा बालक नाथ जी 3 वर्ष की अल्पायु में ही अपना घर छोड़ कर चार धाम की यात्रा करते-करते शाहतलाई (जिला बिलासपुर) नामक स्थान पर पहुंचे थे। शाहतलाई में ही रहने वाली माई रतनो नामक महिला ने, जिनकी कोई संतान नहीं थी इन्हें अपना धर्म का पुत्र बनाया। बाबा जी ने 12 वर्ष माई रतनो की गऊएं चराईं। एक दिन माता रतनो के ताना मारने पर बाबा जी ने अपने चमत्कार से 12 वर्ष की लस्सी व रोटियां एक पल में लौटा दीं। इस घटना की जब आस-पास के क्षेत्र में चर्चा हुई तो ऋषि-मुनि व अन्य लोग बाबा जी की चमत्कारी शक्ति से बहुत प्रभावित हुए। गुरु गोरख नाथ जी को जब से ज्ञात हुआ कि एक बालक बहुत ही चमत्कारी शक्ति वाला है तो उन्होंने बाबा बालक नाथ जी को अपना चेला बनाना चाहा परंतु बाबा जी के इंकार करने पर गोरखनाथ बहुत क्रोधित हुए। जब गोरखनाथ ने उन्हें जबरदस्ती चेला बनाना चाहा तो बाबा जी शाहतलाई से उडारी मारकर धौलगिरि पर्वत पर पहुंच गए जहां आजकल बाबा जी की पवित्र सुंदर गुफा है। मंदिर के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही अखंड धूणा सबको आकर्षित करता है। यह धूणा बाबा बालक नाथ जी का तेज स्थल होने के कारण भक्तों की असीम श्रद्धा का केंद्र है। धूणे के पास ही बाबा जी का पुरातन चिमटा है। बाबा जी की गुफा के सामने ही एक बहुत सुंदर गैलरी का निर्माण किया गया है जहां से महिलाएं बाबा जी की सुंदर गुफा में प्रतिष्ठित मूर्ति के दर्शन करती हैं। सेवकजन बाबा जी की गुफा पर रोट का प्रसाद चढ़ाते हैं। बताया जाता है कि जब बाबा जी गुफा में अलोप हुए तो यहां एक (दियोट) दीपक जलता रहता था जिसकी रोशनी रात्रि में दूर-दूर तक जाती थी इसलिए लोग बाबा जी को, ‘दियोट सिद्ध’ के नाम से भी जानते हैं। वर्तमान समय में महंत राजिंद्र गिरि जी महाराज ही सेवा कर रहे हैं। लोगों की मान्यता है कि भक्त मन में जो भी इच्छा लेकर जाए वह अवश्य पूरी होती है। बाबा जी अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं इसलिए देश-विदेश व दूर-दूर से श्रद्धालु बाबा जी के मंदिर में अपने श्रद्धासुमन अर्पित करने आते हैं।
            • बाबा बालक नाथ सिद्ध धाम

            • हिमाचल प्रदेश की मूल धार्मिक प्रवृति व संस्कृति में उच्च भाव केंद्रों के रूप में अनेक सिद्ध तीर्थ प्रतिष्ठित हैं। इनमें बाबा बालक नाथ सिद्ध धाम दियोटसिद्ध उत्तरी भारत का दिव्य सिद्ध पीठ हैं। हमीरपुर जिला के धौलागिरी पर्वत के सुरम्य शिखर पर सिद्ध बाबा बालक नाथ जी की पावन गुफा स्थापित है। सिद्ध पीठ में देश व विदेश से प्रतिवर्ष लाखों श्रद्वालु बाबा जी का आशीर्वाद के लिए पहुंचते हैं। इसका प्रबंध हिमाचल सरकार के अधीन है। हमारे देश में अनेकानेक देवी-देवताओं के अलावा नौ नाथ और चौरासी सिद्ध भी हुए हैं, जो सहस्रों वर्षों तक जीवित रहते हैं और आज भी अपने सूक्ष्म रूप में वे लोक में विचरण करते हैं। भागवत पुराण के छठे स्कंद के सातवें अध्याय में वर्णन आता है कि देवराज इंद्र की सेवा में जहां देवगण और अन्य सहायकगण थे, वहीं सिद्ध भी शामिल थे। नाथों में गुरु गोरखनाथ का नाम आता है। इसी प्रकार 84 सिद्धों में बाबा बालक नाथ जी का नाम आता है। बाबा बालक नाथ जी के बारे में प्रसिद्ध है कि इनका जन्म युगों-युगों में होता रहा है। प्राचीन मान्यता के अनुसार बाबा बालक नाथ जी को भगवान शिव का अंश अवतार ही माना जाता है। श्रद्धालुओं में ऐसी धारणा है कि बाबा बालक नाथ जी 3 वर्ष की अल्पायु में ही अपना घर छोड़ कर चार धाम की यात्रा करते-करते शाहतलाई नामक स्थान पर पहुंचे थे। बाबा बालक नाथ सिद्ध धाम दियोटसिद्ध उत्तरी भारत के विख्यात सिद्ध पीठों में से एक है। जो चिरकाल से ही सिद्ध बाबा बालक नाथ के पुण्य प्रतापों के बल पर निरंतर महिमावान हैं।
              • कैसे पहुंचें बाबा बालक नाथ सिद्ध धाम मंदिर ?

              • धौलगिरी पर्वत के सुरम्य शिखर पर प्रतिष्ठित बाबा जी की पावन गुफा की जिला मुख्यालय से हमीरपुर से दूरी 45 किलोमीटर, शिमला से भोटा-सलौणी 170 किलोमीटर और बरंठी से शाहतलाई होते हुए 155 किलोमीटर है। चंडीगढ़ से ऊना-बड़सर, शाहतलाई के रास्ते 185 कलोमीटर है। पठानकोट से कांगड़ा एनएच 103 के रास्ते 200 किलोमीटर है। ऊना तक अन्य राज्यों से रेलवे सुविधा उपलब्ध है। ऊना से दियोटसिद्ध तक 65 किलोमीटर का सफर सड़क से तय करना पड़ता है। दियोटसिद्ध के सिद्ध नगर की समतल तलहटी में सरयाली खड्ड के किनारे शाहतलाई नामक कस्बा स्थापित है। सिद्ध बाबा बालक नाथ जी दियोटसिद्ध में अपना धाम प्रतिष्ठित करने से पूर्व शाहतलाई की अपनी तपोस्थली व कर्मस्थली को लंबे अरसे तक रखा है। शाहतलाई जिला बिलासपुर में स्थित है जबकि दियोटसिद्ध जिला हमीरपुर में स्थित है। बिलासपुर से शाहतलाई से दूरी 64 किलोमीटर व दियोटसिद्ध पांच किलोमीटर है।
                • पुराणों एवं साहित्य में संदर्भ बाबा बालक नाथ सिद्ध धाम

                • पुराणों एवं साहित्य में सिद्ध परंपरा के पर्याप्त संदर्भ सुलभ है। पतंजलि योग सूत्र के विभूति पाद उल्लेख के अनुसार सिद्धों के दर्शन समान्यता नहीं होते हैं परंतु मनुष्य अपने शरीर के ऊपरी भाग में मन संयम करते हैं तब सिद्धों के दर्शन सुलभ होते हैं। बाबा बालक नाथ जी को कलियुग का साक्षात अवतार सर्वोच्च सिद्ध माना गया है। सिद्धों के विलक्षण चरित्र व संबंधित लोक का महाभारत के अश्वमेघ पर्व में भी उल्लेख मिलता हैं। लोकमत के अनुसार सिद्ध पुरुष सहस्त्रों वर्ष जीवित रहते हैं और आज भी सूक्ष्म रूप में लोक विचरण करते हैं। बाबा बालक नाथ जी का जन्म पौराणिक मुनिदेव व्यास के पुत्र शुकदेव के जन्म के समय बताया जाता है। शुकदेव मुनि का जब जन्म हुआ, उसी समय 84 सिद्धों ने विभिन्न स्थानों पर जन्म लिया। इनमें सर्वोच्च सिद्ध बाबा बालक नाथ भी एक हुए। बाबा बालक नाथ गुरु दत्तात्रेय के शिष्य थे। ऐतिहासिक संदर्भ में नवनाथों और 84 सिद्धों का समय आठवीं से 12वीं सदी के बीच माना जाता है। चंबा के राजा साहिल वर्मन के राज्यकाल जोकि दसवीं शताब्दीं का है, के समय 84 सिद्ध भरमौर गए थे। वे जिस स्थान पर रुके थे, वह स्थान आज भी भरमौर चौरासी के नाम से विख्यात है। नौवीं शताब्दी ही ङ्क्षहदी साहित्य में सरहपा, शहपा, लूईपा आदि कुछ सिद्ध संतों की वाणियां मिलती हैं। बाबा बालक नाथ जी के बारे में लोकश्रुति अत्यंत प्रसिद्ध है कि उनका जन्म युगों-युगों में होता है। सतयुग में स्कंद, त्रेता में कौल, द्वापर में महाकौल और कलियुग में बाबा बालक नाथ के नाम से उनका अवतार हुआ है। बाल योगी बाबा बालक नाथ काठियाबाड़ गुजरात में पिता नारायण विष्णो वेश और माता लक्ष्मी के घर जन्मे हैं। गिरनार पर्वत के सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल जूनागढ़ में गुरु दतात्रेय से उन्हें दीक्षा प्राप्त हुई। उस जमाने के सूर्यग्रहण के समय कुरुक्षेत्र पधारे बाबा बालक घूमते-घूमते बिलासपुर के बछरेटू में पहुंचे वहां कुछ समय रहने के बाद शाहतलाई मे आए जहां उनकी भेंट माई रत्नो से हुई और शाहतलाई में उन्होंने वट वृक्ष के नीचे अपनी धूनी रमाई। 12 वर्ष का समय पूरा होने के बाद पौणाहारी बाबा बालक नाथ ने दियोटसिद्व में अपना धाम प्रतिष्ठित किया जहां उनकी भेंट चकमोह के गाय चराने वाले बनारसी दास से हुई। आज यह स्थान दियोटसिद्ध नगर प्रतिष्ठित हैं। दियोटसिद्ध में चरणपादुका मंदिर भरथरी मंदिर, मठ स्थल, महंत कृपालगिर समाधि स्थल, महंत शक्ति गिरी समाधि स्थल, महंत शिव गिर समाधि स्थल, महंत रणजीत समाधि स्थल आदि अनेक दिव्य मंदिर हैं। शाहतलाई में ही रहने वाली माई रतनो नामक महिला ने, जिसकी कोई संतान नहीं थी, इन्हें अपना धर्म का पुत्र बनाया। बाबा जी ने 12 वर्ष माई रतनो की गउएं चराई। एक दिन माता रतनो के ताना मारने पर बाबा जी ने अपने चमत्कार से 12 वर्ष की लस्सी व रोटियां एक पल में लौटा दीं। इस घटना की जब आसपास के क्षेत्र में चर्चा हुई, तो ऋषि-मुनि व अन्य लोग बाबा जी की चमत्कारी शक्ति से बहुत प्रभावित हुए। गुरु गोरख नाथ जी को जब से ज्ञात हुआ कि एक बालक बहुत ही चमत्कारी शक्ति वाला है, तो उन्होंने बाबा बालक नाथ जी को अपना चेला बनाना चाहा, परंतु बाबा जी के इंकार करने पर गोरखनाथ बहुत क्रोधित हुए। जब गोरखनाथ ने उन्हें जबरदस्ती चेला बनाना चाहा, तो बाबा जी शाहतलाई से उडारी मारकर धौलगिरि पर्वत पर पहुंच गए, जहां आजकल बाबा जी की पवित्र सुंदर गुफा है। मंदिर के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही अखंड धूणा सबको आकर्षित करता है। यह धूणा बाबा बालक नाथ जी का तेज स्थल होने के कारण भक्तों की असीम श्रद्धा का केंद्र है। धूणे के पास ही बाबा जी का पुरातन चिमटा है। बाबा जी की गुफा के सामने ही एक बहुत सुंदर गैलरी का निर्माण किया गया है, जहां से महिलाएं बाबा जी की सुंदर गुफा में प्रतिष्ठित मूर्ति के दर्शन करती हैं। सेवकजन बाबा जी की गुफा पर रोट का प्रसाद चढ़ाते हैं। बताया जाता है कि जब बाबा जी गुफा में अलोप हुए, तो यहां एक (दियोट) दीपक जलता रहता था, जिसकी रोशनी रात्रि में दूर-दूर तक जाती थी इसलिए लोग बाबा जी को दियोटसिद्ध के नाम से भी जानते हैं। लोगों की मान्यता है कि भक्त मन में जो भी इच्छा लेकर जाएं, वह अवश्य पूरी होती है। बाबा जी अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं इसलिए देश-विदेश व दूर-दूर से श्रद्धालू बाबा जी के मंदिर में अपने श्रद्धासुमन अर्पित करने आते हैं। यहां एक महीने तक वार्षिक मेला लगता है। जो 14 मार्च से शुरू होकर 13 अप्रैल तक मनाया जाता है। मेलों के दौरान श्रद्धालुओं के ठहरने की पूरी व्यवस्था की जाती है। श्री सिद्ध बाबा बालक नाथ जी की मेहर आप सभी पर भी बनी रहे इस कामना के साथ जय सिद्ध बाबा बालक नाथ जी ।
                  • बाबा बालक नाथ मंदिर के पास होटल और आवास

                  • विभिन्न बजट और प्राथमिकताओं के अनुरूप आवास के कई विकल्प उपलब्ध हैं। दियोटसिद्ध में ठहरने के लिए सबसे लोकप्रिय विकल्पों में से एक महंत बाबा बालक नाथ चैरिटेबल ट्रस्ट धर्मशाला है, जो किफायती कीमतों पर बुनियादी लेकिन आरामदायक कमरे उपलब्ध कराता है। महंत बाबा बालक नाथ धर्मार्थ ट्रस्ट धर्मशाला मंदिर के पास स्थित है और तीर्थयात्रियों के लिए शांतिपूर्ण और शांत वातावरण प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त, मंदिर परिसर में और उसके आसपास कुछ अन्य गेस्ट हाउस और लॉज स्थित हैं जो सरल और किफायती आवास प्रदान करते हैं। कोई भी व्यक्ति महंत बाबा बालक नाथ चैरिटेबल ट्रस्ट धर्मशाला में कमरे बुक करने के लिए मोबाइल फोन नंबर-93172-99300 पर कॉल कर सकता है और पैन कार्ड/आधारकार्ड/ड्राइविंग लाइसेंस की कॉपी के साथ व्हाट्सएप कॉपी भेज सकता है। प्रामाणिक सरकारी दस्तावेजों के बिना यह ऑनलाइन बुकिंग सुविधा अमान्य है। कृपया ध्यान दें कि इस संबंध में कोई भी दावा/मुआवजा स्वीकार नहीं किया जाएगा
                    • चमत्कार

                    • बालकनाथ और गोरक्षनाथ सामान्यतः नाथ योगियों और विशेष रूप से गुरु गोरक्षनाथ के साथ बालकनाथ के संबंध को समझना आसान नहीं है। वह संभवतः नाथ संप्रदाय के योगी थे, लेकिन साथ ही, उनके बारे में विभिन्न किंवदंतियों से ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने खुद को इससे कुछ हद तक अलग स्थापित करने की कोशिश की थी। बालकनाथ आज भी नाथ योगियों के बीच एक सामान्य नाम है, और आमतौर पर यह उन लोगों को दिया जाता है जो बहुत कम उम्र में योगी बन गए थे (बालक का अर्थ है युवा लड़का)। वर्तमान में, नाथ सम्प्रदाय के भीतर, अभी भी इसी नाम के कुछ योगी हैं। यह कहना कठिन है कि बाबा बालकनाथ गुरु गोरक्षनाथ के शिष्य थे या नहीं। फिर भी, सभी किंवदंतियाँ इस बात पर एकमत हैं कि वे मिले थे और उनके बीच जादुई शक्तियों की प्रतियोगिता भी हुई थी। एक किंवदंती के अनुसार, गुरु गोरक्षनाथ और उनके 300 शिष्य शाह तलाई में बाबा बालकनाथ के पास आए। सबसे पहले, उन्होंने बाबा से उन सभी को बैठने के लिए जगह उपलब्ध कराने के लिए कहा। इसके जवाब में, बाबा ने अपना तौलिया जमीन पर रख दिया, और यह गुरु गोरक्षनाथ के सभी 300 शिष्यों को समायोजित करने के लिए पर्याप्त आकार में फैलने लगा। सबके बैठने के बाद तौलिये का एक बड़ा हिस्सा खाली रह गया। तब गुरु गोरक्षनाथ ने बाबा से पास के एक पहाड़ी तालाब से कुछ पानी लाने को कहा, जहां से वे गुजरे थे। जब बाबा तालाब के पास गए और एक कटोरे में पानी भरने की कोशिश की, तो उन्हें एहसास हुआ कि गोरक्षनाथ ने तालाब पर अपना जादू चलाया था। कटोरे में डाला गया पानी गायब हो जाएगा। तब उन्हें समझ आया कि गोरक्षनाथ इस चमत्कार से उन्हें अपमानित करना चाह रहे हैं। इसके जवाब में बाबा बालकनाथ ने तालाब गायब कर दिया और जब वे लौटे तो उन्होंने गोरक्षनाथ से कहा कि तालाब न होने के कारण वे पानी नहीं ला सकते। रास्ते में गोरक्षनाथ को तालाब दिखा तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ और उन्होंने अपने शिष्य भर्तृहरि को मामले की जांच करने के लिए भेजा। बाबा बालकनाथ भर्तृहरि के साथ थे, जिन्होंने पहले भी तालाब देखा था। जब वह दूसरी बार वहां आया तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गया कि तालाब गायब हो गया है। बाबा बालकनाथ ने बताया कि उनके गुरु गोरक्षनाथ एक घमंडी व्यक्ति थे जो अपनी प्रसिद्धि बढ़ाना चाहते थे। भर्तृहरि की आँखें खुल गईं और उन्होंने गोरक्षनाथ का साथ छोड़कर बाबा बालकनाथ के साथ रहने का निश्चय कर लिया। जब बाबा बालकनाथ बिना जल और भर्तृहरि के लौट आये तो गोरक्षनाथ ने भर्तृहरि को जल सहित वापस लाने के लिए भैरोनाथ को भेजा। भैरोनाथ को भी न तो तालाब मिला और न ही भर्तृहरि, और वे भी खाली हाथ लौट आये। जब गोरक्षनाथ को एहसास हुआ कि पानी उपलब्ध नहीं है, तो उन्होंने बाबा से उन सभी को दूध पिलाने के लिए कहा। बाबा ने एक दूध न देने वाली, बाँझ गाय को बुलाया और उसका दूध निकालने लगे। गाय ने सभी को संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त दूध दिया। सभी योगियों का पेट भर जाने के बाद भी बाबा बालकनाथ के कटोरे में बहुत सारा दूध बाकी था। गोरक्षनाथ ने बाघ की खाल से बना अपना आसन आकाश की ओर फेंक दिया और बाबा से इसे वापस जमीन पर लाने को कहा। फिर बाबा ने अपना चिमटा उसकी ओर फेंका, और बाघ की खाल छोटे-छोटे टुकड़ों में फटकर जमीन पर गिर गयी। इसके बाद बाबा बालकनाथ ने गुरु गोरक्षनाथ से अपना अग्नि चिमटा वापस धरती पर लाने को कहा। गोरक्षनाथ ने भैरोनाथ से ऐसा करने को कहा, लेकिन वह ऐसा करने में असमर्थ रहे। नाथ योगियों के बीच नाथ कथा का एक और संस्करण भी प्रचलित है। जब गुरु गोरक्षनाथ बाबा बालकनाथ से मिले थे तो उन्होंने उनके कान तोड़कर उनमें कुंडल डालने की इच्छा जताई थी। इससे बचने के लिए बाबा बालकनाथ हवा में उड़ गए और भागने की कोशिश करने लगे, लेकिन गुरु गोरक्षनाथ ने उन्हें पकड़ने के लिए अपना हाथ असाधारण रूप से लंबा बढ़ाया और उन्हें वापस खींच लिया। जब गोरक्षनाथ अपने इरादों पर अड़े रहे, तो बाबा बालकनाथ ने बार-बार विरोध किया और उनसे कहा कि वह अपने कानों के लोब केवल भगवान शिव द्वारा ही कटने देंगे। उस समय, गुरु गोरक्षनाथ ने उनकी इच्छा पूरी की और उन्हें आशीर्वाद देकर अकेला छोड़ दिया। स्थानीय किंवदंती के अनुसार, गोरक्षनाथ ने सोचा कि ऐसे प्रतिष्ठित योगी को प्रवेश दिलाना नाथ संप्रदाय के लिए मददगार हो सकता है। हालाँकि, बाबा बालकनाथ इनमें से कुछ भी करने को तैयार नहीं थे। दोनों योगियों के बीच प्रतिस्पर्धा हुई, जिसके परिणामस्वरूप बालकनाथ अंततः अपने इरादों में सफल हो गए। इस प्रतियोगिता के बारे में किंवदंती के दो अलग-अलग संस्करण हैं, एक जो मंदिर के आसपास मौखिक परंपरा के रूप में प्रसारित होता है, और दूसरा नाथ योगियों के बीच। पहले में गोरक्षनाथ को बाबा बालकनाथ द्वारा पराजित दिखाया गया है, और दूसरे में विजयी के रूप में, लेकिन बालकनाथ को अपने कान काटे बिना स्वयं बने रहने की अनुमति दी गई है। बाबा बालकनाथ को भगवान शिव और पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय का अवतार भी माना जाता है। कार्तिकेय की तरह, बाबा बालकनाथ को अक्सर साँप पर खड़े मोर के साथ चित्रित किया जाता है। मोर को साँपों के प्राकृतिक शत्रु के रूप में जाना जाता है, और कार्तिकेय की कुछ छवियों में इस पक्षी को मुँह में साँप लिए हुए दिखाया गया है। इसके अलावा, मोर भगवान कृष्ण से जुड़ा हुआ है, जो हमेशा अपने सिर के शीर्ष पर अपना "आंख" पंख रखते हैं। कार्तिकेय को शक्ति-धारा के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि वह अपने हाथ में एक भाला रखते हैं, जो उनकी व्यक्तिगत शक्ति (शक्ति) पर उनके नियंत्रण का प्रतीक है।
                      • बाबा बालक नाथ मंदिर जाने का सही समय कब है?`

                      • कोई भी वर्ष के दौरान किसी भी समय इस पूजनीय स्थान पर आसानी से जा सकता है। सप्ताहांत और विशेष रूप से रविवार को यहाँ भीड़ हो सकती है क्योंकि रविवार का बाबा जी के शुभ दिन के रूप में महत्व है। हर साल, चैत्र माह के मेले 14 मार्च से 13 अप्रैल तक आयोजित किए जाते हैं और इस आयोजन में बड़ी संख्या में अनुयायी आते हैं।`
                        • बाबा बालक नाथ मंदिर कहाँ स्थित है?

                        • हमीरपुर और बिलासपुर जिले की सीमा पर चकमोह गांव के दियोटसिद्ध क्षेत्र में स्थित यह स्थान हमीरपुर से 45 किमी की दूरी पर स्थित है। बाबा जी की पवित्र मूर्ति धौलागिरी पर्वत पहाड़ी पर एक प्राकृतिक गुफा में स्थित है।
                          • हिमाचल प्रदेश में बाबा बालक नाथ मंदिर का इतिहास

                          • भारत के प्रत्येक राज्य में धार्मिक मंदिरों और तीर्थस्थलों का अपना हिस्सा है, और उत्तरी राज्य हिमाचल प्रदेश भी अलग नहीं है। हिमाचल प्रदेश के कई मंदिरों में से, बाबा बालक नाथ मंदिर सबसे लोकप्रिय में से एक है। यह मंदिर हिंदू देवता भगवान शिव को समर्पित है और कहा जाता है कि यह 1000 वर्ष से अधिक पुराना है। इस लेख में हम इस प्राचीन मंदिर के इतिहास पर एक नज़र डालेंगे। बाबा बालक नाथ सिद्धपीठ हिमालयी राज्य हिमाचल प्रदेश में एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है, जिसे भगवान की अपनी भूमि के रूप में भी जाना जाता है। "दियोटसिद्ध" उनके तीर्थ का नाम है। यह "हमीरपुर" से 45 किलोमीटर दूर है, जो हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर और बिलासपुर जिलों की सीमा के पास है। बाबा बालक नाथ मंदिर हमीरपुर जिले के "चकमोह" गांव में एक पहाड़ी की चोटी पर, पहाड़ियों में बनी एक प्राकृतिक गुफा में स्थित है, जिसे बाबा का निवास स्थान माना जाता है। गुफा में बाबा की एक मूर्ति है।
                            • हिमाचल प्रदेश में बाबा बालक नाथ मंदिर के पीछे का इतिहास

                            • बाबा बालक नाथ मंदिर हिमाचल प्रदेश के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है। यह मंदिर टांडा के सुरम्य गांव में स्थित है, जो समुद्र तल से 3,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण वर्ष 1783 में महाराजा संसार चंद कटोच ने करवाया था। हमीरपुर जिले के दियोटसिद्ध में प्राचीन गुफा और मंदिर वास्तुकला है। भारत और विदेश से लाखों श्रद्धालु "सिद्ध परंपरा" में अपनी दृढ़ आस्था को मजबूत करने के लिए इस मंदिर में आते हैं। यह मंदिर बाबा बालक नाथ को समर्पित है, जिन्हें भगवान शिव का अवतार माना जाता है। बाबा बालक नाथ को "टांडा के देवता" के रूप में भी जाना जाता है और माना जाता है कि उनके पास चमत्कारी शक्तियां हैं। हर साल, हजारों भक्त बाबा बालक नाथ का आशीर्वाद लेने के लिए मंदिर में आते हैं। बाबा बालक नाथ का जन्म गुजरात के जूनागढ़ में बालक देव के रूप में हुआ था। वृन्दावन में उन्होंने दत्तात्रेय से संन्यास की दीक्षा प्राप्त की। यह माना जाता है कि उन्होंने कुछ भी नहीं खाया और केवल दूध पर जीवित रहे। परिणामस्वरूप, उन्हें दूधाधारी के नाम से जाना जाने लगा। गोरखनाथ बाबाजी को अपना शिष्य बनाना चाहते थे, लेकिन उन्होंने मना कर दिया क्योंकि वे दत्तात्रेय के शिष्य थे। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने हमीरपुर के दियोटसिद्ध में ढोलगिरी में तपस्या की थी, जहां उन्होंने एक अघोरी को धर्म का सही अर्थ सिखाया था।
                              • हिमाचल प्रदेश में बाबा बालक नाथ मंदिर भक्तों के बीच इतना प्रसिद्ध क्यों है?

                              • बाबा बालक नाथ एक प्रसिद्ध योगी हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्हें भगवान शिव के प्रत्यक्ष दर्शन हुए थे। यह व्यापक रूप से माना जाता है कि बाबा बालक नाथ जी के गीत या भजन सुनने और भगवान शिव की पूजा करने से इच्छा पूर्ति में सहायता मिलती है। ऐसा माना जाता है कि वह आधुनिक भारत के हिमाचल प्रदेश में रहते थे। निम्नलिखित कहानी बाबा बालक नाथ के बारे में उनके अनुयायियों द्वारा बताई गई है। बाबा बालक नाथ मंदिर हिमाचल प्रदेश के सबसे लोकप्रिय तीर्थ स्थलों में से एक है। धर्मशाला शहर में स्थित, यह मंदिर हिंदू देवता बाबा बालक नाथ को समर्पित है, जिन्हें भगवान शिव का अवतार माना जाता है। पूरे भारत से श्रद्धालु मंदिर में प्रार्थना करने और बाबा बालक नाथ से आशीर्वाद लेने आते हैं। मंदिर परिसर में विभिन्न हिंदू देवताओं को समर्पित कई अन्य मंदिर भी हैं। यहां एक विशाल बरगद का पेड़ भी है जो 500 साल से भी ज्यादा पुराना बताया जाता है। भक्त अपनी प्रार्थना के रूप में पेड़ के चारों ओर धागे बांधते हैं। हर साल शिवरात्रि के अवसर पर मंदिर परिसर में एक भव्य मेला आयोजित किया जाता है। मेले में हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं और बाबा की पूजा-अर्चना करते हैं
                                • हिमाचल प्रदेश में बाबा बालक नाथ मंदिर का महत्व

                                • बाबा बालक नाथ मंदिर हिमाचल प्रदेश राज्य के सबसे पवित्र और सबसे प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक है। धर्मशाला के सुरम्य पहाड़ी शहर में स्थित इस मंदिर में पूरे भारत और विदेशों से श्रद्धालु आते हैं। बाबा बालक नाथ का मंदिर बहुत पवित्र माना जाता है और सदियों से एक तीर्थ स्थल रहा है। भक्तों का मानना है कि इस मंदिर की यात्रा से उनकी आत्मा शुद्ध हो जाएगी और वे भगवान के करीब आ जाएंगे। मंदिर परिसर में कई अन्य तीर्थस्थल और मंदिर भी हैं, जो इसे भगवान शिव के सभी भक्तों के लिए एक अवश्य देखने योग्य स्थान बनाता है। बाबा बालक नाथ को हिंदू धर्म में सबसे दयालु देवता और भगवान शिव के कलियुग अवतार के रूप में भी पूजा जाता है। आशीर्वाद लेने के लिए भक्त बड़ी संख्या में मंदिर में आते हैं। पर्यटक शाहतलाई के पास रोपवे सुविधा की ओर भी आकर्षित होते हैं। बिना किसी संदेह के, बाबा बालक नाथ मंदिर उत्तरी भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है।
                                  • अवलोकन और महत्व

                                  • बाबा बालक नाथ या सिद्ध बाबा बालक नाथ, जिन्हें पौनाहारी या दूधाधारी के नाम से भी जाना जाता है, एक हिंदू देवता हैं जिनकी पूजा उत्तरी भारतीय राज्यों पंजाब और हिमाचल प्रदेश में की जाती है। माना जाता है कि बाबा बालक नाथ भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय के अवतार थे, जिनका जन्म सतयुग में राक्षस तारकासुर का विनाश करने के लिए हुआ था। वह देवी गंगा के प्रिय हैं और गुजरात के काठियावाड़ जूनागढ़ में एक पंडित विष्णु और लक्ष्मी के पुत्र के रूप में अपने सांसारिक निवास में आए।